हिंदी की महान लेखिका महादेवी वर्मा हिंदी साहित्य में छायावदी युग की चार प्रमुख स्तंभों में से एक है। महादेवी वर्मा ने केवल काव्य रचना ही नहीं की अपितु काव्य समालोचना, संस्मरण, संपादन तथा निबंध लेखन के क्षेत्र में प्रचुर कार्य किया है इसके साथ ही वे एक अप्रतिम रेखा चित्रकार भीं थी। उनका जन्म होली के दिन हुआ था और वे काफी हसमुंख स्वभाव की थी। महादेवी जी पूजा पाठ के प्रति अतयधिक आग्रही थीं। महादेवी जी को जीवन में अनेक विडम्बनाओं का सामना भी करना पड़ा। इनकी चर्चा उन्होने अपने संस्मरण में की है।
हिंदी विरह की सबसे सशक्त कवयित्री होने के कारण उन्हें आधुनिक मीरा के नाम से भी जाना जाता है। महाकवि निराला ने उन्हें ”हिंदी के विशाल मंदिर की सरस्वती भी कहा है।“ वे उन कवियों में से एक हैं जिन्होनें व्यापक समाज में काम करते हुए भारत के भीतर विद्यमान हाहाकार, रुदन को देखा, परखा और करुण होकर अंधकार को दूर करने वाली दृष्टि देने का प्रयास किया। उन्होने मन की पीड़ा को स्नेह, श्रृंगार से सजाया और काव्य संग्रह दीपशिखा में वह उनकी पीड़ा के रूप में स्थापित हुई और उसने केवल पाठकों तक हो ही नहीं अपितु समीक्षकों तक को झकझोरा और गहराई से प्रभावित किया। उन्होने हिंदी की कविता में उस कोमल शब्दावली का विकास किया जो अभी तक केवल ब्रजभाषा में ही मानी जाती थी।
महादेवी वर्मा कवयित्री होने के साथ ही साथ कुशल चित्रकार तथा अनुवादक भी थीं। उन्हें हिंदी साहित्य के सभी पुरस्कार प्राप्त होने का सौभाग्य प्राप्त है। 1932 में उन्होने महिला पत्रिका चांद का कार्यभार संभाला। 1930 में निहार,1932 में रश्मि, 1934 में नीरजा,1936 में सांध्यगीत नामक उनके चार कविता संग्रह प्रकाशित हुए। 1939 में इन चार काव्य संग्रहों को मिलाकर वृहदाकार में यामा शीर्षक से प्रकाशित किया गया। यामा के संकलन के लिए उन्हें सर्वोच्च पुरस्कार ज्ञानपीठ से सम्मानित किया गया। छायावादी काव्य की समृद्धि में महादेवी वर्मा का योगदान अप्रतिम है।
इसके अतिरिक्त उनकी 18 और कृतियां हैं जिसमें गद्य और पद्य दोनों शामिल हैं। मेरा परिवार,स्मृति की रेखाएं, पथ के साथी, श्रृंखला की कड़ियां और अतीत के चलचित्र प्रमुख गद्य कृतियाँ हैं। उन्होंने निबंध भी लिखे जिसमें विवेचनात्मक गद्य,साहित्यकार की आस्था तथा कुछ अन्य निबंध व गद्य साहित्य के क्षेत्र में उनका आलोचना साहित्य उनके काव्य की ही भांति महत्वपूर्ण है।उनके संस्मरण भारतीय जीवन के संस्मरण चित्र हैं।उन्होंने नई दिल्ली में आयोजित हिंदी सम्मेलन की अध्यक्षता भी की।16 सितम्बर 1991 को जयशंकर प्रसाद के साथ उनका युगल डाक टिकट भी जारी किया।
महादेवी वर्मा कोमल भावनाओं की संवाहक थीं। सात वर्ष की अवस्था में उन्होने पहली कविता लिखी थी -“आओ प्यारे तारे आओ मेरे आंगन में बिछ जाओ।” उनका विवाह मात्र 9 वर्ष की अवस्था में हो गया था। जबकि उनकी अभी और पढ़ाई करने की इच्छा थी। इसलिए उन्होने ससुराल जाने की बजाय शिक्षा का मार्ग चुना। 1932 में उन्होने प्रयाग विवि से संस्कृत में एम. ए. किया। इसके बाद वे उच्च शिक्षा के लिए विदेश जाना चाहतीं थीं। परन्तु गांधी जी ने उन्हें नारी शिक्षा के क्षेत्र में कार्य करने के लिए प्रेरित किया। अतः उन्होने प्रयाग में ही महिला विद्यापीठ महाविद्यालय की स्थापना की। जिसकी वे कुलपति बनीं। उन्होने साहित्यकारों के लिए साहित्यकार संसद बनाई।
महादेवी जी के मन पर गांधी जी का व्यापक प्रभाव था। बापू गुजराती और हिंदी बहुत अच्छी जानते थे फिर भी वे हिंदी में बोलते थे। महादेवी जी ने जब इसका कारण पूछा तो उन्होने कहा कि हिंदी भारत की आत्मा को सहज ढंग से व्यक्त कर सकती है। तब से ही महादेवी वर्मा ने हिंदी को अपने जीवन का आधार बना लिया। वे महाप्राण निराला को अपना भाई मानकर उन्हें राखी बांधती थीं। उनके विशाल परिवार में गाय, हिरण, बिल्ली, गिलहरी, खरगोश, कुत्ते आदि के साथ लता और पुष्प भी थे।अपने संसमरणों में उन्होने इन सबकी चर्चा की है।