इस संसार में प्राणी सदैव भय से जीता है, कोई भी व्यक्ति कभी भी निर्भय नहीं हो सकता। यह तो संभव है कि डर की अनुभूति की तीव्रता कम हो जाए, लेकिन यह किसी को कहीं भी निर्भय नहीं बनाता। हम खुद को निर्भय नहीं बनाते पाते, इसलिए दूसरों को भयभीत बनाने का प्रयास करते हैं। वे मुझसे डरते हैं, यही सोचकर की वे भयभीत हैं पर मैं भयभीत नहीं, इसी से वे खुद को निर्भय महसूस करते हैं। यह विचार कि वे डरते हैं लेकिन मैं नहीं डरता, उन्हें निडर महसूस कराता है। भय के कारण ही आधुनिक, अति आधुनिक हथियारों की होड़ सी लगती है; यह जितना अधिक डर पैदा करता है, डर फैलाने के लिए उतने ही आधुनिक हथियारों का आविष्कार किया जाता है। दूसरों के लिए डर पैदा करके हर व्यक्ति केवल अपने अंदर आत्मविश्वास विकसित करने का प्रयास करता है।
भय अँधेरे की तरह है, अगर आप इसे दूर भगाने की कोशिश भी करें तो भी आप इसे बाहर नहीं निकाल सकते। अँधेरा कोई ऐसी चीज है ही नहीं कि उसे निकाला जा सके। दीपक जलते ही अंधकार मिट जाता है। अँधेरा कहीं नहीं जाता, क्योंकि अँधेरा कोई चीज़ नहीं है, अँधेरा प्रकाश का अभाव है...
इसी तरह, भय कुछ भी नहीं है, यह प्रेम के अभाव की स्थिति है। भय एक नकारात्मक ऊर्जा है और प्रेम साकारात्मक भाव है प्रेम जहां नहीं वहां भय स्वतः ही अपना स्थान बना लेता हैजब भी आपको जीवन में प्यार के पलों को जीने का मौका मिलेगा, तो आपको लगेगा कि आपके जीवन में कोई भय नहीं । जहां प्रेम है वहां भय नहीं हो सकता। अगर हम भगवान से प्यार करेंगे तो आप खुद को निडर पाएंगे क्योंकि भगवान से प्यार के बदले में कभी धोखा नहीं मिलता। लेकिन जब हम भय के प्रभाव में भगवान से प्रेम करते हैं, तब भी जीवन कभी भी निर्भय नहीं हो सकता। जब हम जानते हैं कि हम अपने कार्यों में गलत हैं, तो हम भय से भर जाते हैं। हमें लगता है कि भगवान हमें हमारे पापों के लिए दंडित करेंगे, इसलिए हम डर के साथ उनसे प्रार्थना करते हैं लेकिन हम निडर नहीं रह सकते।
प्रेम आपके भीतर है, जब आप किसी प्रिय वस्तु या प्राणी को अपनी आंखों से देखते हैं तो आपके भीतर प्रेम जाग उठता है। जीवन में जितनी सरलता आएगी, जीवन जितना निस्वार्थ बनेगा, उतना ही आपके भीतर प्रेम स्थिर होगा। प्रेम की पराकाष्ठा तब होती है जब आप प्रकृति की हर संरचना में प्रेम देखते हैं, जब आप हर चीज में ईश्वर को देखते हैं तो प्रेम करना स्वाभाविक है, या यूं कहें कि जब आप हर चीज को ईश्वर की कृपा के रूप में देखते हैं तो आपको कृपा का एहसास होता है।
यही वह समय होता है जब आप प्रेम से भर जाते हैं, तभी आपके भीतर खुशी की लहरें उठती हैं, तन-मन में एक लहर उठती है। अब जीवन निर्भय है, वह ईश्वर जो वास्तव में निर्भय है, आपमें समाया हुआ है, यही जीवन की पूर्णता और चरम उपलब्धि है।
जीवन में प्रेम शुद्ध और निस्वार्थ होने पर ही व्यक्ति को भय से मुक्ति मिल सकती है, इसके अलावा और कोई रास्ता नहीं कि हम खुद को निडर पा सके।
पंडित राजेश अवस्थी
ज्योतिर्विद